बीमार बच्चे की देखभाल में मामूली सी गलती पैरेंट्स के लिए बहुत भारी पड़ सकती है। कई बार माता-पिता चिंता या अनजानी जानकारी के कारण ऐसे कदम उठा लेते हैं जो बच्चे की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो जाते हैं। हाल ही में दिल्ली के डॉक्टर राम मनोहर लोहिया (RML) हॉस्पिटल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञों ने इस बारे में गंभीर चेतावनी जारी की है। डॉक्टरों का कहना है कि कुछ सामान्य सी लगने वाली आदतें और इलाज का तरीका बच्चों की जान तक ले सकता है।
अक्सर बच्चे जब बुखार, खांसी या उल्टी-दस्त से पीड़ित होते हैं तो माता-पिता घर पर ही घरेलू इलाज या बिना डॉक्टर की सलाह के दवाइयां दे देते हैं। खास बात यह है कि ऐसे मामलों में समय पर सही इलाज न मिलने से बच्चे की हालत और बिगड़ जाती है। इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि RML के डॉक्टरों ने किस गलती को सबसे खतरनाक बताया है, और ऐसी स्थिति में सही तरीका क्या होना चाहिए।
Parents Alert 2025
RML अस्पताल के डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि बच्चे को बुखार या वायरल इंफेक्शन के समय पेरेंट्स बिना जांच के एंटीबायोटिक दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं, जो बहुत ही गलत है। डॉक्टरों ने बताया कि जब बच्चा वायरल से पीड़ित होता है, तब एंटीबायोटिक देना पूरी तरह बेअसर साबित होता है। इससे न केवल बच्चे की इम्यूनिटी (प्रतिरक्षा ताकत) घटती है, बल्कि शरीर में दवा की रेजिस्टेंस भी बढ़ जाती है, जिससे भविष्य में असली संक्रमण के समय दवा असर नहीं करती।
डॉ. पी. एस. शर्मा (RML हॉस्पिटल, बाल विभाग) के अनुसार, “माता-पिता अपने बच्चों को सामान्य बुखार या सर्दी-खांसी में खुद से दवा देना शुरू कर देते हैं, जबकि यह सबसे बड़ा खतरा है। कई बार इससे किडनी, लीवर और दिल पर भी असर पड़ सकता है।” उन्होंने बताया कि कई पैरेंट्स बुखार उतरने तक बच्चे को बार-बार पेरासिटामोल या सिरप देते हैं, पर कभी यह नहीं देखते कि तापमान का कारण क्या है।
खुद से दवा देना या डॉक्टर बदलना- दोनों खतरनाक
आरएमएल के डॉक्टरों ने यह भी कहा कि बच्चे की बीमारी के दौरान पैरेंट्स कई बार एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के पास भागते रहते हैं, जिससे बीमारी के इलाज में निरंतरता नहीं रहती। यह आदत गलत होती है, क्योंकि हर डॉक्टर अलग दवा देता है और अंत में पूरा सिस्टम प्रभावित हो जाता है।
कई मामलों में माता-पिता हर्बल या घरेलू ट्रीटमेंट अपनाते हैं, जो बच्चे के शरीर के लिए उचित नहीं होते। विशेष रूप से बहुत छोटे बच्चों (6 महीने से कम उम्र) को कोई भी घरेलू काढ़ा या देसी दवा देने से पहले विशेषज्ञ परामर्श जरूरी है।
बीमार बच्चे की सही देखभाल कैसे करें
डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे के शरीर में बुखार, उल्टी, दस्त, या सांस लेने में तकलीफ जैसी स्थिति दिखे तो पहला कदम उसे तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ के पास ले जाना होना चाहिए। घर पर कुछ सावधानियां रखना ज़रूरी है – जैसे बच्चे को हल्का कपड़ा पहनाना, गुनगुने पानी की पट्टी से शरीर ठंडा करना, और पर्याप्त पानी या दूध देना।
बुखार के समय बच्चे को नहलाना नहीं चाहिए, बल्कि शरीर का तापमान धीरे-धीरे कम करने के उपाय करने चाहिए। साथ ही हर दवा डॉक्टर के निर्देश पर ही दी जानी चाहिए। खास ध्यान रहे कि बच्चे की उम्र और वजन के अनुसार ही दवा की मात्रा तय होती है, न कि बड़े व्यक्ति की तरह।
सरकार की ओर से बच्चों के स्वास्थ्य के लिए प्रमुख योजनाएं
बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की हैं। इनमें प्रमुख हैं — राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK), पोषण अभियान, और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK)।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) के तहत सरकार 0 से 18 वर्ष तक के बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच करती है। इसमें जन्मजात बीमारियाँ, कुपोषण और विकास से जुड़ी दिक्कतें जल्दी पहचानकर मुफ्त इलाज दिया जाता है। यह कार्यक्रम स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों के ज़रिए चलाया जाता है।
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) में बच्चों और माताओं को अस्पताल में मुफ्त इलाज, दवा, और परिवहन सुविधा दी जाती है। इसका उद्देश्य है कि कोई भी गरीब परिवार बच्चे के इलाज के अभाव में नुकसान न उठाए।
पोषण अभियान के जरिए सरकार बच्चों और गर्भवती महिलाओं को संतुलित आहार, आयरन-फोलिक एसिड की गोलियां और स्वास्थ्य शिक्षा उपलब्ध करवाती है, ताकि बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो।
डॉक्टरों की चेतावनी: लापरवाही से लुट सकता है संसार
RML के डॉक्टरों ने कहा कि बच्चे की सेहत में लापरवाही पूरे परिवार की खुशियों को प्रभावित कर सकती है। “बीमार बच्चे के साथ हर छोटी गलती, चाहे दवा की मात्रा गलत देना हो या बीमारी को हल्के में लेना — भविष्य में बड़ी विपत्ति बन सकती है,” डॉक्टर ने कहा।
उन्होंने यह भी बताया कि पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई केस सामने आए हैं जहाँ गलत दवा देने से बच्चों को एलर्जी, फिट्स (दौरे) या लीवर फेलियर जैसी गंभीर स्थिति हुई। RML अस्पताल के बाल विभाग में हर हफ्ते 30 से 40 ऐसे बच्चे भर्ती होते हैं जिनकी स्थिति शुरुआत में सिर्फ वायरल बुखार थी, लेकिन गलत इलाज ने हालात बिगाड़ दिए।
पेरेंट्स के लिए जरूरी सलाह
माता-पिता को याद रखना चाहिए कि बच्चे का शरीर बहुत नाज़ुक होता है। किसी भी इलाज से पहले डॉक्टर की सलाह लेना ही सही तरीका है। अगर डॉक्टर की अपॉइंटमेंट लेने में समय लगता है, तो आप सरकारी अस्पतालों में मुफ्त प्राथमिक जांच की सुविधा का लाभ उठाएं।
इसके अलावा, बच्चों के टीकाकरण (Immunization) का पूरा रिकॉर्ड बनाए रखें। यह बीमारियों से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है। हर बच्चे को जन्म से 5 वर्ष तक सरकार की यूनीवर्सल इम्यूनाइजेशन स्कीम (Universal Immunization Programme) के तहत मुफ्त टीके दिए जाते हैं — जैसे पोलियो, खसरा, DPT, और BCG।
निष्कर्ष
बीमार बच्चे की देखभाल भावनात्मक जिम्मेदारी के साथ समझदारी भी मांगती है। RML के डॉक्टरों की चेतावनी हमें बताती है कि छोटी सी लापरवाही भी बड़ी त्रासदी बन सकती है। माता-पिता को चाहिए कि किसी भी हालत में खुद से दवा न दें और डॉक्टर की सलाह पर ही कदम उठाएं। सही इलाज, सरकारी योजनाओं का लाभ, और नियमित जांच ही बच्चों के बेहतर भविष्य की गारंटी है।