यहाँ 2025 की नई बैंकिंग रेगुलेशंस का आसान हिंदी में पूरा लेख दिया जा रहा है, जिसमें UPI लिमिट, क्रेडिट लाइन ऑन UPI, बैंक गवर्नेंस रिफॉर्म्स और अन्य महत्वपूर्ण बदलाव शामिल हैं, ताकि पाठक को सभी जरूरी बातें एक जगह पर मिल सकें।
भारत में 2025 में डिजिटल पेमेंट और बैंकिंग गवर्नेंस, दोनों मोर्चों पर बड़े अपडेट लागू हो रहे हैं जिनका असर ग्राहकों, व्यापारियों और बैंकों पर सीधे दिखेगा। UPI के लिए रोज़ाना की लिमिट, खास कैटेगरी के लिए बढ़ी हुई सीमाएँ, और प्री-सैंक्शन क्रेडिट लाइन के उपयोग के नियम स्पष्ट किए गए हैं, जिससे बड़े मूल्य के भुगतान और सुरक्षित लेनदेन को बढ़ावा मिले।
दूसरी तरफ, RBI ने बैंक बोर्ड और उसकी सब-समितियों पर निगरानी कड़ी की है, ताकि रिस्क मैनेजमेंट, ऑडिट और नॉमिनेशन-रिम्यूनरेशन जैसी प्रक्रियाएँ मजबूत हों और जवाबदेही बढ़े। इसके साथ ही, कुछ ऑपरेशनल बदलाव जैसे ऑटो-डेबिट समय-सीमा, बैलेंस चेक फ्रीक्वेंसी और UPI ऐप-लेवल नियंत्रक नियम भी 2025 में चरणबद्ध तरीके से लागू हो रहे हैं।
कुल मिलाकर, मकसद है फ्रॉड कम करना, बड़े वैध ट्रांजैक्शंस को सुविधा देना और बैंकिंग सिस्टम की गवर्नेंस को अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब ले जाना।
RBI Banking Rules 2025
2025 में UPI की सामान्य दैनिक सीमा अधिकतर उपयोगकर्ताओं के लिए ₹1 लाख बनी रहती है, जबकि कुछ विशेष कैटेगरी—जैसे कैपिटल मार्केट, इंश्योरेंस, टैक्स पेमेंट, एजुकेशन, हॉस्पिटल, IPO और RBI रिटेल डायरेक्ट—में प्रति-ट्रांजैक्शन सीमा ₹2–5 लाख तक और कुल दैनिक सीमा चयनित मामलों में ₹10 लाख तक बढ़ाई गई है।
NPCI ने 15 सितंबर 2025 से श्रेणी-विशिष्ट लिमिट बढ़ोतरी की घोषणा की, ताकि बड़े वैध पेमेंट बिना ब्रेक्स के पूरे किए जा सकें; उदाहरण के लिए इंश्योरेंस प्रीमियम और कैपिटल मार्केट पेमेंट में प्रति-ट्रांजैक्शन ₹5 लाख और एक दिन में कुल ₹10 लाख तक की अनुमति दी जा सकती है, जहाँ बैंक और कैटेगरी नियम लागू होंगे।
ध्यान रहे, अधिकांश पर्सन-टू-पर्सन UPI ट्रांसफर पर ग्राहक से शुल्क नहीं लिया जाता, लेकिन वॉलेट-आधारित PPI मर्चेंट ट्रांजैक्शन ₹2,000 से ऊपर पर इंटरचेंज लग सकता है जिसे व्यापारी वहन करते हैं, ग्राहक नहीं।
कई बैंकों की अपनी ऑपरेशनल लिमिट भी हो सकती है, इसलिए अंतिम उपयोग-योग्य लिमिट बैंक/ऐप/उपयोगकर्ता प्रोफाइल पर निर्भर रह सकती है, और NPCI के अनुसार दैनिक ट्रांजैक्शन की संख्या पर भी कैप लागू होते हैं।
UPI के ऑपरेशनल नियमों में 2025 में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जैसे बैलेंस चेक और अकाउंट व्यू की फ्रीक्वेंसी पर सीमाएँ, और ऑटो-डेबिट/ऑटोपे समय-स्लॉट के मानक ताकि सिस्टम लोड और सुरक्षा बेहतर रहे।
कई UPI ऐप्स में अधिकतम ट्रांजैक्शन संख्या और नए उपयोगकर्ताओं के लिए शुरुआती 24 घंटे में कम लिमिट जैसे प्रावधान लागू किए जा रहे हैं, जिससे जोखिम घटे और फ्रॉड-प्रोन अवधि में सुरक्षा बढ़े। साथ ही, UPI 123Pay और फीचर-फोन आधारित पेमेंट के लिए भी अलग पर-ट्रांजैक्शन कैप मौजूद हैं, जो समग्र इकोसिस्टम की समावेशिता बढ़ाते हैं।
क्रेडिट लाइन ऑन UPI के लिए 2025 में NPCI ने विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं, जो 31 अगस्त 2025 से लागू माने गए—इनका उद्देश्य है कि बैंक द्वारा दी गई प्री-सैंक्शन क्रेडिट लाइन का उपयोग उसी उदेश्य के लिए हो जिसके लिए लोन मंजूर हुआ था, और मर्चेंट कैटेगरी कोड्स का समर्थन बढ़े ताकि उपयोग सहज और अनुपालन-संगत रहे।
इसका मतलब, अगर शिक्षा, व्यापार या वर्किंग कैपिटल हेतु बैंक ने क्रेडिट लाइन दी है तो UPI के जरिए खर्च उसी लक्ष्य तक सीमित रहना चाहिए; बैंक और ऐप प्रदाता MCC कवरेज बढ़ाकर अनुमत व्यापार श्रेणियों में भुगतान संभव करेंगे। RBI/बैंक द्वारा प्रतिबंधित श्रेणियों में क्रेडिट लाइन का उपयोग नहीं किया जा सकेगा; ये प्रतिबंध बैंक/नियामक द्वारा श्रेणीवार निर्धारित होते हैं और ऐप-लेवल पर लागू कराए जाते हैं।
बैंकिंग गवर्नेंस रिफॉर्म्स में RBI ने बोर्ड मीटिंग्स, सब-कमेटियों की कार्यप्रणाली और स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका पर फोकस बढ़ाया है, ताकि बोर्ड एक प्रभावी चेक-एंड-बैलेंस की तरह काम करे। ऑडिट कमेटी, रिस्क मैनेजमेंट कमेटी और नॉमिनेशन-रिम्यूनरेशन कमेटी की संरचना, मीटिंग फ्रीक्वेंसी और चेयरपर्सन की स्वतंत्रता पर स्पष्ट मानक दोहराए गए हैं, जिससे एक व्यक्ति के पास अत्यधिक प्रभाव केंद्रित न हो और तीनों कार्यक्षेत्रों में विशेषज्ञ निगरानी हो।
साथ ही, गैर-कार्यकारी निदेशकों की अधिकतम आयु सीमा और कार्यकाल पर कैप, कूलिंग-ऑफ पीरियड जैसी शर्तें बताई गई हैं, ताकि बोर्ड में ताज़ा दृष्टि और जवाबदेही बनी रहे और संभावित गवर्नेंस जोखिम घटें।
स्ट्रक्चरल रूप से, RBI ने जोखिम-आधारित जमाराशि प्रीमियम पर विचार, संशोधित बेसल-III कैपिटल फ्रेमवर्क की आगे की समयसीमा और सूचना-सुरक्षा गवर्नेंस के मानकों पर भी संकेत दिए हैं, जिससे पूंजी, जोखिम और टेक-सुरक्षा के बीच संतुलन मज़बूत हो।
ये कदम बैंक बैलेंस शीट की मजबूती, साइबर-रेज़िलिएंस और ग्राहक सुरक्षा को बेहतर करने की दिशा में हैं, और इनके विस्तृत ऑपरेशनल दिशानिर्देश क्रमशः सर्कुलर/गाइडलाइंस के जरिए जारी होते हैं। समग्र प्रभाव यह होगा कि उपभोक्ताओं के लिए बड़े वैध डिजिटल भुगतान सहज होंगे, पर नियम-कुशलता, ऑडिट-ट्रेल और रिस्क कंट्रोल्स भी समानांतर कड़े रहेंगे।
यह बदलाव किस योजना/पहल के तहत
UPI सीमाएँ और नियम NPCI की UPI प्रणाली के तहत अधिसूचित होते हैं, जहाँ RBI एक नियामक पर्यवेक्षक की भूमिका में भुगतान पारिस्थितिकी की स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है। “क्रेडिट लाइन ऑन UPI” NPCI की उत्पाद-श्रेणी है जिसमें बैंक द्वारा पूर्व-स्वीकृत क्रेडिट लिमिट को UPI हैंडल से जोड़कर स्वीकृत उपयोग-उद्देश्य के लिए खर्च करने की अनुमति मिलती है।
गवर्नेंस रिफॉर्म्स RBI के मास्टर डायरेक्शन, सर्कुलर और निरीक्षण ढाँचे के हिस्से हैं, जिनका लक्ष्य बोर्ड-संचालित निगरानी, रिस्क कंट्रोल्स और स्वतंत्र निदेशकों की प्रभावी भागीदारी को मजबूत करना है।
कौन-क्या दे रहा है
- सरकार/नियामक पक्ष: RBI गवर्नेंस मानक, पूंजी/जोखिम नियम और पर्यवेक्षी दिशा निर्देश देता है; NPCI UPI ऑपरेशनल नियम, कैटेगरी-विशिष्ट लिमिट और क्रेडिट लाइन ऑन UPI ढाँचा जारी करता है।
- बैंक/PSP पक्ष: बैंक ग्राहक प्रोफाइल, जोखिम और अनुपालन के अनुसार वास्तविक लिमिट/फ्रीक्वेंसी सेट करते हैं; PSP/ऐप प्रदाता तकनीकी नियंत्रण, MCC सपोर्ट और सुरक्षा फंक्शन लागू करते हैं।
- व्यापारी पक्ष: वॉलेट-आधारित PPI मर्चेंट ट्रांजैक्शन पर इंटरचेंज लागत उठाते हैं; बड़ी वैल्यू कैटेगरी में बढ़ी सीमाओं से उच्च-मूल्य भुगतान की सुविधा पाते हैं।
निष्कर्ष
2025 की नई बैंकिंग रेगुलेशंस का फोकस दो चीज़ों पर है—बड़े वैध डिजिटल भुगतान को आसान बनाना और बैंकिंग गवर्नेंस व सुरक्षा को मजबूत करना, ताकि सिस्टम तेज़ भी रहे और सुरक्षित भी। UPI लिमिट में कैटेगरी-आधारित बढ़ोतरी, क्रेडिट लाइन ऑन UPI के उद्देश्य-विशिष्ट नियम, और RBI के गवर्नेंस अपग्रेड—ये सभी मिलकर उपभोक्ता-हित और सिस्टम-स्थिरता को संतुलित करते हैं।
आने वाले महीनों में इन नियमों के चरणबद्ध क्रियान्वयन से उपयोगकर्ता अनुभव और बैंकिंग पारदर्शिता, दोनों में सुधार दिखने की उम्मीद है।